भारत में स्थित सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह विज्ञान के लिए भी एक रहस्य रहा है। इसे 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है। आज मैं आपको इस मंदिर से जुड़ी ऐसी जानकारी देने वाला हूँ, जिसे सुनकर विज्ञान के जानकार भी हैरान रह जाएंगे।
इस मंदिर में एक वर्ण स्तंभ (ध्वज स्तंभ) स्थित है, जिसके ऊपर पृथ्वी जैसी आकृति और एक बाण बना हुआ है। इस स्तंभ के नीचे एक शिलालेख पर कुछ ऐसा लिखा है, जिसे पढ़कर आपके रोंगटे खड़े हो सकते हैं। इस पर लिखा है:
"समुद्रांत दक्षिण ध्रुव, पर्यंत अबाधित ज्योतिमार्ग"
इसका अर्थ है: "समुद्र की दिशा में, दक्षिण ध्रुव तक बिना किसी रुकावट के एक सीधा ज्योति (प्रकाश) मार्ग है।"
जब वैज्ञानिकों ने इस दिशा की पुष्टि की, तो सच में पाया गया कि स्तंभ की दिशा से दक्षिण ध्रुव (South Pole) तक कोई भी ज़मीन का टुकड़ा नहीं है – केवल समुद्र ही है। यह एक अद्भुत तथ्य है, जो उस समय की वैज्ञानिक समझ को दर्शाता है।
अब सवाल उठता है कि यह स्तंभ और मंदिर कितने पुराने हैं?
गुजर प्रतिहार वंश के राजा नागभट्ट द्वितीय (805–833 ईस्वी) के काल में इस मंदिर का उल्लेख ऐतिहासिक अभिलेखों में मिलता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह मंदिर और इसका स्तंभ कम से कम 1200 साल पुराने हैं।
लेकिन 2020 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में मंदिर प्रांगण में खुदाई हुई, तो वहाँ मिले कुछ पुरावशेषों से पता चला कि यह स्थान लगभग 2100 वर्ष पुराना है – यानी ईसा मसीह के जन्म से भी पहले का।
इतिहासकारों के अनुसार, यह स्तंभ संभवतः 6वीं शताब्दी में निर्मित किया गया था।
अब सोचिए – उस समय, बिना किसी आधुनिक तकनीक के, इतनी सटीक दिशा और भौगोलिक जानकारी कैसे प्राप्त की गई होगी?
यह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि प्राचीन भारत की ज्ञान और विज्ञान की गहराई को दर्शाता है।
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